जय श्री कृष्णा जय सियाराम आज की पोस्ट विशेष श्राद्ध पर है श्राद्ध क्या है इसके क्या भेद है श्राद्ध कितने प्रकार का होत है इसकी चर्चा आज हम करेंगे
शास्त्रों में श्राद्ध के अनेक भेद बताए गए हैं लेकिन जो अत्यंत आवश्यक है वह मैं आपको बताने जा रहा हूं जो अनूठे हैं
मत्स्य पुराण के अनुसार तीन प्रकार के श्राद्ध बताए गए हैं
👏नित्यम नैमित्तिकम काम्यं त्रिविधम श्राद्ध मुच्यते 👏
नित्य नैमित्तिक और काम भेज शेष श्राद्ध तीन प्रकार के होते हैं
स्मृतियों में पांच प्रकार के श्राद्ध का वर्णन है काम्या, वृद्धि, नित्य, नैमित्ति क, और पार्वण श्राद्ध.
1.प्रतिदिन किए जाने वाले श्राद्ध को नित्य श्राद्ध कहते हैं इसमें विश्व में देव नहीं होते हैं तथा क्रिया वस्था में केवल जल प्रदान से ही इस श्राद्ध की पूर्ति होती है

2. एको दिष्ट श्राद्ध को नैमित्तिक श्राद्ध कहते हैं इसमें भी विश्वे देव नहीं होते हैं
3.किसी कामना की पूर्ति के लिए किए जाने वाले श्राद्ध को काम्य श्राद्ध कहते है,

4. वृद्धि काल मे किए गए पुत्र जन्म मे, विवाह आदि मांगलिक कार्यों में श्राद्ध किया जाता है उसे वृद्धि श्राद्ध या नांदिमुख श्राद्ध कहते हैं… इसका वर्डन रामायण आदि ग्रंथो मे पुराणों मे भी है. कई जगह.
5. पितृ पक्ष मे अमवस्या मे अथवा पर्व तिथि पर सदैव विश्वे देवा सहित जो श्राद्ध हो उसे पार्वण श्राद्ध कहते है
इस प्रकार से श्राद्ध के पांच भेद हैं
विश्वामित्र स्मृति तथा भविष्य पुराण में नित्य नैमित्तिक, काम्य,वृद्धि, पार्वण,सपिंडन, गोष्ठी, शुद्यर्थ, कमार्ग, दैविक, यात्रार्थ, तथा पुस्टयर्थ ये बारह प्रकार के श्राद्ध बताये गए है,
पराया सभी साधनों का अंतर भाव ऊपर दिए 5 श्राधो में ही हो जाता है
जिस श्राद्ध में प्रेत पिंड का पितृ पिंड में सम्मेलन किया जाए उसे सपिंडदान श्राद्ध कहते हैं

समूह में जो श्राद्ध किया जाए उसे गोष्ठी श्राद्ध कहते हैं
शुद्ध के निमित्त जिस श्राद्ध में ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है उसे शुद्धयर्थ श्राद्ध कहते हैं
गर्भाधान सीमंतोन्नयना तथा उन संस्कारों में जो श्राद्ध किया जाता है उसे कमार्ग श्राद्ध कहते हैं
सप्तमी आदि तिथियों में विशिष्ट हविष्य के द्वारा देवताओं के निमित्त जो श्राद्ध किया जाता है उसे दैविश्राद्ध कहते हैं
तीर्थ के उद्देश्य से देशांतर जाने के समय घी के द्वारा जो श्राद्ध किया जाता है उसे यथार्थ श्राद्ध कहते हैं
शारीरिक अथवा आर्थिक उन्नति के लिए जो श्राद्ध किया जाता है वह पुस्टयर्थ श्राद्ध कहलाता है
उपर्युक्त सभी प्रकार के श्राद्ध स्रोत और स्मार्त भेद से दो प्रकार के होते हैं पिंड पितृ यज्ञ को स्रोत श्राद्ध कहते है और एक और दुष्ट पार्वण तथा तीर्थ श्राद्ध से लेकर मरण के श्राद्ध को स्मार्त श्राद्ध कहते है
श्राद्ध के 16 अवसर हैं
12 महीनों की बारा अमावस्या ए सतयुग त्रेता युग उनकी प्रारंभ की चार युग आदि तिथियां मनु की आरंभ की 14 मनुवादी कि तिथियां 12 संक्रांतिया 12 वैधृति योग. 12 व्यतिपात योग, 15 महालय श्राद्ध (पितृ पक्ष ) पांच अष्टका 5 अनुवष्टका तथा पांच पूर्वेद्धू - ये सोलह श्राद्ध के अवसर है..
इति सिद्धम!!!!!!😘🥰
रामानंदी अंकुश त्रिपाठी की लेख ✍🏽.
आपका स्नेही 🙏🙏🙏रामा नंदी
हरहरमहादेव सदा विजयी भव
पोस्ट पर समय देने के लिए साधुवाद.